जापान में टूटे हुए बरतनों को गोंद के समान एक तरल पदार्थ में पिसी हुई चांदी और सोना मिलाकर जोड़ा जाता है। जुड़ाई किए गए बरतन में भोजन डालकर सगर्व मेहमानों को पेश किया जाता है। किफायत और बचत जापानी जीवन प्रणाली का स्वभाविक हिस्सा है। दूसरी ओर अमेरिका में टूटे हुए बरतन को फेंक दिया जाता है।
उपयोग करके फेंक देना अमेरिकन जीवन शैली है। अमेरिका कचरे का ढेर बढ़ाता है। दिल्ली नगर निगम की सीमा के परे फेंके हुए कचरे का एक पहाड़ बन गया है। पंछी भी धोखा खा जाते हैं। दो वर्ष बाद आने वाली वैश्विक आर्थिक मंदी का हम पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इंदौर में विष्णु चिंचालकर टूटे-फूटे और फालतू सामान से कलाकृतियां बनाया करते थे। वे फटे हुए कपड़ों का भी इस्तेमाल कर लेते थे।
एक दौर में फिल्में सेल्युलाइड पर बनती थीं। सेल्युलाइड में थोड़ा सा प्रमाण चांदी का होता था। शहरों और कस्बों में फिल्म दिखाने के बाद प्रिंट्स निर्माता को लौटाना होता था। इन लौटाए प्रिंट को गलाकर निर्माता चांदी निकाल लेता था। आजकल डिजिटल का प्रयोग होता है। इसमें चांदी के अंश नहीं होते। नोलन जैसे फिल्मकार आज भी सेल्युलाइड का इस्तेमाल करते हैं।
उनका ख्याल है सेल्युलाइड अधिक समय तक कायम रहता है। फिल्म की शूटिंग के बाद सैट को डिसमेंटल किया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ चीजें टूट जाती हैं। सैट विभाग में कारपेंटर और दर्जी होते हैं। वे अगली शूटिंग तक सब कुछ दुरुस्त कर लेते हैं। बदलते मौसम को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ स्टॉक शॉट्स का प्रयोग किया जाता है।
कुछ फिल्मकार केवल नाटकीय दृश्यों के लिए पार्श्व संगीत रिकॉर्ड करते हैं। शेष फिल्म में स्टॉक संगीत का प्रयोग किया जाता है। ए.आर.रहमान ने एक अमेरिकन फिल्म में पुलिस द्वारा अपराधियों का पीछा किए जाने के दृश्य में केवल तबलों की ध्वनि का ही प्रयोग किया। ए.आर.रहमान ने अपने स्टूडियो में लता मंगेशकर के गीतों के छोटे अंश लेकर एक नया गीत बनाया, जिसे लताजी ने कभी गाया ही नहीं था। रहमान ने इसे एक प्रयोग की तरह किया। वह गीत कभी इस्तेमाल नहीं किया गया।
एक्शन फिल्मों में कारों की दौड़ और दुर्घटना तथा गोला-बारूद द्वारा कार के उड़ाए जाने के स्टॉक शॉट्स ही इस्तेमाल किए जाते हैं। कभी गोला लगने पर कार हवा में उछाल नहीं लेती, परंतु नाटकीय प्रभाव के लिए यह किया जाता है। इसी तरह किसी कार को ऊंचाई से फेंकने के दृश्य में कार से इंजन निकाल लिया जाता है। मनुष्य के ऊंचाई से गिरने के दृश्य में पुराने कपड़ों से बना पुतला फेंका जाता है।
हिंसा के दृश्यों में नायक के डबल का प्रयोग किया जाता है। कभी डबल दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, उसके परिवार को यथेष्ठ आर्थिक सहायता दी जाती है। दूध भी फट जाता है। फटे दूध से पनीर बनाया जाता है। अधिकांश बंगाली मिठाइयां फटे हुए दूध से ही बनाई जाती हैं। प्राय: हाथ की कोहनी के पास का ऊनी वस्त्र फट जाता है।
उस स्थान पर चमड़े का पैच लगाया जाता है। शादी उत्सव के समय मेहमान अपनी प्लेट पर आवश्यकता से अधिक भोजन ले लेते हैं। इस पर राजकुमार हिरानी की थ्री-ईडियट्स में इस बाबत् एक मजेदार दृश्य रचा गया था। रीसाइकिलिंग से बचत और किफायत की जाती है। बहरहाल फिल्म मधुमति में शैलेंद्र का गीत है- टूटे हुए ख्वाबों ने, हमको ये सिखाया है, दिल ने जिसे पाया था, आंखों ने गंवाया है...।