मस्तिष्क काम न करे तो योग का सहारा लें

प्रकृति के चमत्कार भी बड़े गजब के हैं। जैसे- विज्ञान मानता है कि समझदार से समझदार, घोर प्रतिभाशाली व्यक्ति भी जीवन में अपने मस्तिष्क का आधा हिस्सा ही उपयोग में ले पाता है। बाकी आधा भाग जीवनभर अनुपयोगी ही रह जाता है। जब तक आधे हिस्से से काम करेंगे, कितने ही योग्य हों, हम जिंदगी की कुछ घटनाएं पकड़ नहीं पाएंगे।


श्रीराम-रावण युद्ध में मेघनाद माया फैला रहा था। ऐसा दृश्य उपस्थित कर दिया था कि दसों दिशाओं में बाण छा गए। यहां तुलसीदासजी ने लिखा- ‘धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना।।’ चारों ओर पकड़ो..पकड़ो.., मारो.. मारो.. सुनाई दे रहा था, पर जो मार रहा था, उसे कोई नहीं जान पाता। हमारी जिंदगी में भी कई बार ऐसे दृश्य बन जाते हैं। आज जिस प्रकार का वातावरण है, उसमें हल्ला तो बहुत है, अत्याचार-दुराचार हो रहे हैं, लेकिन फिर भी हम पकड़ नहीं पाते कि यह कौन कर रहा है?


आसपास का वातावरण ऐसा हो जाए कि मस्तिष्क पूरी तरह से काम न करे तो योग का सहारा लीजिए। कहते हैं कि जब मनुष्य अपने आज्ञा चक्र (दोनों भौहों के बीच) पर काम करता है तो उसका निष्क्रिय पड़ा आधा मस्तिष्क भी काम करने लगता है। मतलब विज्ञान जिस चिंता में है, योग उसे मिटा देता है। और जैसे ही यह फिक्र मिटी, आसपास  के वो सारे दृश्य दिखने लग जाएंगे तो हमें गलत की ओर धकेलते हैं..। फिर आप सजग होकर स्वयं को भी बचा पाएंगे और दूसरों को भी..।